हॉल में मैं दिल्ली किताब मेला के एक दौरे पर गया. बहुत बढ़िया लगा यह देख कर की किताब मेले में अभी भी इतने लोग आते हैं. लेकिन कहीं एक कोने में, एक छोटे से स्टाल पर e-reader के प्रचार को देख कर फिर वह द्वन्द जहन में शुरू हुआ की क्या किताबें ख़त्म हो जाएँगी? यह तो वक़्त ही बताएगा पर किताबों से मोहब्बत करने वाले गुलज़ार साहेब लिखेते हैं
`कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बनाकर
नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छुते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा इंशाल्लाह
मगर वे जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महकते हुए रुक्के
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा
वो शायद नहीं होंगे`
1 comment:
I was there as well, yesterday. good interesting finds. there was a kiosk from some old library of Rampur, you might know. it looked interesting enough to warrant a stop-over on our numerous visits to Himalayas.
that e-reader, i guess it was called wink, is yet to come. i believe books are gonna stay at least till our lifetimes :-)
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